Ab ke bars bhej bhaiya ko baabul
अब के बरस भेज भैया को बाबूल,सावन में लीजो बुलाय रे
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां,दीजो संदेसा भिजाय रे
अंबुवा तले फिर से झूले पड़ेगे,रिमझिम पड़ेगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आंगन में बाबूल,सावन की ठंडी बाहरे
छ्लके नयन मोरा किसके रे जियरा,बचपन की जब याद आए रे
बैरन जवानी ने छीने खिलौने,और मेरी गुड़िया चुराई
बाबूल थी मैं तेरे नाजों की पाली,फिर क्यों हुई मैं पराई
बीते रे जुग कोई चिठिया ना पाती,ना कोई नैहर से आये रे ।
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